Sunday, September 25, 2016

कामनाओ का मोक्ष एक बहुत अच्छा प्रयास

 अभी हाल मैं मैंने कामनाओ का मोक्ष पुस्तक पड़ी जो की रहस्मय कहानी की महारथ रखने वाले रोहित शुक्ला जी ने लिखी हैं | इस फिक्शनल उपन्यास को पड़कर मुझे बहुत ही अच्छी और सुखद अनुभूति हुई |

जिसके कारन मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने पाठको को अवगत करा रहा हूँ | इसकी पृष्टभूमि बहुत ही विचारपूर्ण और आजकल के सम्माज की कहानी का एक चित्रण हैं | बुजर्ग लोगो की ज़िन्दगी के मायनो को यह बहुत ही सजीव तरीके से प्रतिपादित करती है | क्या आज समाज मैं जहा परिवार की बुनियाद और हमारी संस्कृति कही न कहीं आझोल हो रही हैं इसे मैं लेखक एक बुजर्ग क्या चाहता हैं उसका बहुत ही खूबसूरती से वर्णन करते हैं |

बुजर्ग अपनी उम्र बिताने के बाद उस मोड़ पर आकर खड़े हो जाते हैं जहा पर उनको अपनी ज़िन्दगी का अवलोकन करने का मौका मिलता हैं | वृधाश्रम मैं रहने की पीड़ा और वृधा आश्रम को मैनेज करना यह दोनों पहलु बहुत अच्छे से इस कथा मैं उभरकर कर सामने आते हैं | हर इंसान अपनी ज़िन्दगी मैं भाग रहा हैं और इस भाग दौड़ मैं वह ज़िन्दगी के मायने को भूल जाता हैं | वो ज़िन्दगी मैं इस तरह से खो जाता हैं की ज़िन्दगी के मायने ही भूल जाता हैं | पैसे को पाने की चाह और कहीं का कहीं यह महसूस होना की पैसे ही ज़िन्दगी मैं सब कुछ हैं यह विचार से ऊपर इंसान उठ नहीं पाता या उठा ही नहीं हैं | लेकिन जब वह दौलत को हासिल कर लेता हैं तब इंसानियत क्या उसको छूती हैं यहाँ इंसानियत का घोल उसकी ज़िन्दगी का सार बन जाता हैं इसको रहस्मय अंदाज मैं इस कहानी मैं जिक्र किया गया हैं | कहानी के पत्र बहुत ही सजीव और कहानी की पृष्ठभूमि बहुत ही दिलचस्प हैं |  कहानी मैं रहस्य बना रहता हैं जिसके कारण से एक बार इसको पढना चालू करते हैं फिर इसको पूरा पड़कर ही मन मानता हैं |

कहानी के बारे मैं ज्यादा जिक्र नहीं करूंगा पर कहानी की सीख के बारे मैं बताना पसंद करूंगा

कुछ सवाल ज़िन्दगी के मायने क्या हैं ? इंसानियत ज्यादा जरूरी हैं की सिर्फ पैसा ? क्या हमारे सामाजिक ढाचे ख़तम हो गए हैं | समाज का बहुत तेज गति से विघटन हो रहा हैं ?  रिश्तो की बुनियाद क्या हैं ?  मैं बधाई देना चाहता हूँ रोहित  जी जिन्होंने यह सभ हमको सोचने को मजबूर किया हैं और आशा करता हूँ की आने वाले समय मैं वह इसी तरह हम सब को अपने हिंदी लेखन से इम्प्रेस  करते रहे |

Saturday, September 17, 2016

"साक्षत्कार हृदयस्पर्शी व्यक्तितव से: स्व संजीवनी देशपांडे मैडम एक संस्मरण"

 "साक्षत्कार हृदयस्पर्शी व्यक्तितव से: स्व  संजीवनी देशपांडे मैडम एक संस्मरण" 



                                                            आज दुनिया जहा कुछ पाने की चाह मैं इतने आगे निकल गयी हैं की इंसान को इंसान  के अलावा सब बातों की फ़िक्र हैं । जीवन की इस आपाधापी मैं इंसान अपने व्यक्तित्व को भूल गया हैं  । कही न कही सहृदय की भावना इस समाज से औझल  हो गयी हैं । आज मनुष्य अपने आप मैं इतना व्यस्त हो गया हैं की वह  दूसरो के भाव को भूल सा गया हैं । एक महत्वकांशी व्यक्ति केवल अपनी महत्वकांशा को पाने के लिए दूसरो लोगो को  एक सीडी के रूप मैं देखता हैं । विडम्बना हैं की समाज आजकल इस तरह की विरोधोभास परिस्थिति  मैं ही जीना सीख गया हैं । इसी परिपेक्ष्य मैं एक ऐसे व्यक्तित्व का जिक्र कर रहा हूँ जिस की खोज आज हमारे समाज को हर तरफ से हैं । 

                                                         मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ की मेरी मुलाकात भी कुछ ऐसे लोगो से हुई जिनसे मैं बहुत कुछ सीखा  और जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित किया । एक ऐसा व्यक्तित्व जिनको मैं इस श्रेणी मैं बहुत ऊपर रखता हूँ वो हैं प्रेरणादायक स्व संजीवनी देशपांडे मैडम | मेरे मन को अत्यन्त्क्त दुःख का प्रतिपादन होता हैं की मैडम का स्वर्गवास ४ सितम्बर २०१६ को हो गया पर उनकी दी गयी सीख केवल मुझे हो नहीं पर वह बहुत सारे  लोग जो विद्यालंकार  से जुड़े हुए हैं उनको हमेशा याद रहेगी । यह संस्मरण हैं एक ऐसे व्यक्ति के लिए  जिन्होंने अपने पूरा जीवन दूसरो का  भविष्य बनाने मैं समर्पित कर दिया । 

                                                     कुछ वर्षो पूर्व जब मैडम से मेरी मुलाकात हुई थी वह दिन आज भी मेरे हृदय मैं चिन्हित हैं एक esa  दिन जिसने मेरे सीखने की एक नयी नींव रख दी । मुझे याद हैं जब मैडम मेरे से मिले तो हमारा बीच मैं इतने सहज भाव से वार्तालाप शुरू हुआ की मुझे लगा ही नहीं यह मेरी उनसे पहली मुलाकात हैं । उस समय हमारी बातें विद्यालंकार की स्थापना और विद्यालंकार के सिद्धांत को लेकर होती थी । जो पाठक मेरे ब्लॉग से वाकिफ हैं उनको मैं यहाँ यह जिक्र करना चाहता हूँ की विद्यालंकार एक शक्षणिक समूह हैं जिसकी बुनियाद देशपांडे मैडम ने अपने पतिदेव के साथ १९६० मैं की थी । देशपांडे सर ने उस समय उच्च श्रेणी की सरकारी नौकरी का परित्याग कर विद्यालंकार की स्थापना की थी । उनका उद्य्श्य हमेशा से छात्र समूह को बेहतर से बेहतर शिक्षा प्रधान करने का था इसलिए विद्यालंकार का नाम भी उसी की चिर तार्थ करता हैं । विद्यालंकार का अभीप्राय हैं विद्या और अलंकार का समागम । विद्या हमारे शरीर का अभिन्न अंग हैं और यही हैं विद्यालंकार का मकसद जो आज ५६ साल बाद भी अटल और अभिन्न हैं । 

                                                एक पत्नी हर हाल मैं अपने पति का साथ निभाती हैं और यह हमको मैडम देशपांडे से बेहतर कौन  समझा  सकता हैं । उनके पति का  ऐसे समय मैं सरकारी नौकरी का त्याग करना जब अमुमन  सभी लोग सरकारी नौकरी को  करना पसंद करते थे और ऐसे समय मैं मैडम देशपांडे का उनका हर मोड़ पर साथ निभाना  एक बहुत ही बड़ी मिसाल हैं । मैडम देशपांडे ने शिक्षक  की नौकरी करी  क्योंकि टीचर बनने को अपने धर्म और करम समझती थी । जब देशपांडे सर विद्यालंकार की स्थापना करना मैं जी तोड़ की मेहनत कर रहे  थे तब मैडम देशपांडे परिवार का पालन पोषण अपनी शिक्षक की भूमिका से अदा कर रही थीँ । उन्होंने मुझे हमेशा यह बात बोली की एक शिक्षक से बड़ा समाज मैं योगदान बहुत काम कर्मो का हैं  । एक अच्छा शिक्षक हमेशा अपने  हृदय मैं  अपने छात्रों को ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण स्थान देता हैं । मैं अपने आप को बहुत गौरवान्वित महसूस करता हूँ जब मैडम ने एक दिन मेरी पढ़ाने की कला को बहुत सराहा था वह दिन मेरे शेक्षणिक जीवन का एक बहुत याद गार  दिन हैं मैडम ने मेरे से कहा की "अंकुश तुम एक नेचुरल शिक्षक हो "।  मैंने मैडम से कहा की मैडम मैं आपसे ही सीख कर एक अच्छे इंसान बनने और बनाने की कोशिश कर रहा हूँ ।  अगले पैराग्राफ मैं कुछ बेमिसाल योग्यता आप लोगो से साँझा कर रहा हूँ जो की हम सबको एक अच्छा इंसान बनने मैं मददगार  साबित होंगी 

                                         मैडम हमेशा यह कहा करती थी learn ,earn and return  उनका यह मानना था की एक सुलझा हुआ व्यक्ति वह जो समाज मैं अच्छे काम से अपनी छाप रखता हैं ।  सादगी से भरा जीवन और विनम्र व्यवहार दो ऐसे शब्द हैं जो हमको हमेशा याद रखना और अनुसरण करने की कोशिश निरंतर करना चाहिये । एक समाज मैं विनम्र और हमेशा सीखना की चाह रखने वाले व्यक्ति की बहुत ही आवश्यकता हैं और यही  बातें मैं उनके पुत्र और पुत्री मैं देखता हूँ और उन्ही के प्रयासों से विद्यालंकर आज भी उचाई को  छूने की उड़ान मैं अग्रसर हैं । वह हमेशा कहा करती थी एक संस्थान एक या दो लोगो से जुड़कर नहीं बनता आज एक अच्छा organisation वही हैं जो हर उस व्यक्ति की मेहनत से बनता हैं । वह हर व्यक्ति से इतने स्नेह से बात करती थी की उनसे मिलने के बाद ऐसा  लगता था इस सरलता की आज हमारे  समाज को बहुत आवश्यकता हैं ।आज शारारिक रूप मैं मैडम हमारे बीच मैं नहीं हैं लेकिन उनके विचार,उनके कथन,उनकी  जीवन शैली युगों युगों तक नवयुवको की प्रेरणा का माध्यम रहेगी । आज जब भी मैं उनकी  दूसरी पीड़ी को देखता हूँ तो वह सारे बहुमूल्य गुण मुझे उनमे नजर आते हैं जो आने वाले समय मैं विद्यालंकार को  हमेशा शिक्षा के क्षेत्र मैं गति प्रधान करेंगे । अपने विनम्र स्वाभाव से , अपने अच्छे कर्मो से , अपने प्रसनचित व्यक्तित्व से , कभी हार नहीं मानने वाले गुणो से , हमेशा लोगो के लिए अच्छे विचार रखने वाले के उद्देश्य से आग बढ़ते  रहिये और देखिये की ज़िन्दगी कितनी अर्थ से भरपूर हैं । यही सीख मैडम ने मुझे दी और यह सीख मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आप लोगो को साँझा कर रहा हूँ । मैं एक बार और बार नमन करता हूँ उस व्यक्तिव का जिसने मुझे जीने के मार्ग मैं सच्ची और नितांत ही आवश्यक शिक्षा दी । मैडम आपके विचार इस समाज मैं हमेशा जीवित रहेंगे । 

"साक्षत्कार हृदयस्पर्शी व्यक्तितव से: स्व संजीवनी देशपांडे मैडम एक संस्मरण"

 "साक्षत्कार हृदयस्पर्शी व्यक्तितव से: स्व  संजीवनी देशपांडे मैडम एक संस्मरण" 



                                                            आज दुनिया जहा कुछ पाने की चाह मैं इतने आगे निकल गयी हैं की इंसान को इंसान  के अलावा सब बातों की फ़िक्र हैं । जीवन की इस आपाधापी मैं इंसान अपने व्यक्तित्व को भूल गया हैं  । कही न कही सहृदय की भावना इस समाज से औझल  हो गयी हैं । आज मनुष्य अपने आप मैं इतना व्यस्त हो गया हैं की वह  दूसरो के भाव को भूल सा गया हैं । एक महत्वकांशी व्यक्ति केवल अपनी महत्वकांशा को पाने के लिए दूसरो लोगो को  एक सीडी के रूप मैं देखता हैं । विडम्बना हैं की समाज आजकल इस तरह की विरोधोभास परिस्थिति  मैं ही जीना सीख गया हैं । इसी परिपेक्ष्य मैं एक ऐसे व्यक्तित्व का जिक्र कर रहा हूँ जिस की खोज आज हमारे समाज को हर तरफ से हैं । 

                                                         मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ की मेरी मुलाकात भी कुछ ऐसे लोगो से हुई जिनसे मैं बहुत कुछ सीखा  और जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित किया । एक ऐसा व्यक्तित्व जिनको मैं इस श्रेणी मैं बहुत ऊपर रखता हूँ वो हैं प्रेरणादायक स्व संजीवनी देशपांडे मैडम | मेरे मन को अत्यन्त्क्त दुःख का प्रतिपादन होता हैं की मैडम का स्वर्गवास ४ सितम्बर २०१६ को हो गया पर उनकी दी गयी सीख केवल मुझे हो नहीं पर वह बहुत सारे  लोग जो विद्यालंकार  से जुड़े हुए हैं उनको हमेशा याद रहेगी । यह संस्मरण हैं एक ऐसे व्यक्ति के लिए  जिन्होंने अपने पूरा जीवन दूसरो का  भविष्य बनाने मैं समर्पित कर दिया । 

                                                     कुछ वर्षो पूर्व जब मैडम से मेरी मुलाकात हुई थी वह दिन आज भी मेरे हृदय मैं चिन्हित हैं एक esa  दिन जिसने मेरे सीखने की एक नयी नींव रख दी । मुझे याद हैं जब मैडम मेरे से मिले तो हमारा बीच मैं इतने सहज भाव से वार्तालाप शुरू हुआ की मुझे लगा ही नहीं यह मेरी उनसे पहली मुलाकात हैं । उस समय हमारी बातें विद्यालंकार की स्थापना और विद्यालंकार के सिद्धांत को लेकर होती थी । जो पाठक मेरे ब्लॉग से वाकिफ हैं उनको मैं यहाँ यह जिक्र करना चाहता हूँ की विद्यालंकार एक शक्षणिक समूह हैं जिसकी बुनियाद देशपांडे मैडम ने अपने पतिदेव के साथ १९६० मैं की थी । देशपांडे सर ने उस समय उच्च श्रेणी की सरकारी नौकरी का परित्याग कर विद्यालंकार की स्थापना की थी । उनका उद्य्श्य हमेशा से छात्र समूह को बेहतर से बेहतर शिक्षा प्रधान करने का था इसलिए विद्यालंकार का नाम भी उसी की चिर तार्थ करता हैं । विद्यालंकार का अभीप्राय हैं विद्या और अलंकार का समागम । विद्या हमारे शरीर का अभिन्न अंग हैं और यही हैं विद्यालंकार का मकसद जो आज ५६ साल बाद भी अटल और अभिन्न हैं । 

                                                एक पत्नी हर हाल मैं अपने पति का साथ निभाती हैं और यह हमको मैडम देशपांडे से बेहतर कौन  समझा  सकता हैं । उनके पति का  ऐसे समय मैं सरकारी नौकरी का त्याग करना जब अमुमन  सभी लोग सरकारी नौकरी को  करना पसंद करते थे और ऐसे समय मैं मैडम देशपांडे का उनका हर मोड़ पर साथ निभाना  एक बहुत ही बड़ी मिसाल हैं । मैडम देशपांडे ने शिक्षक  की नौकरी करी  क्योंकि टीचर बनने को अपने धर्म और करम समझती थी । जब देशपांडे सर विद्यालंकार की स्थापना करना मैं जी तोड़ की मेहनत कर रहे  थे तब मैडम देशपांडे परिवार का पालन पोषण अपनी शिक्षक की भूमिका से अदा कर रही थीँ । उन्होंने मुझे हमेशा यह बात बोली की एक शिक्षक से बड़ा समाज मैं योगदान बहुत काम कर्मो का हैं  । एक अच्छा शिक्षक हमेशा अपने  हृदय मैं  अपने छात्रों को ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण स्थान देता हैं । मैं अपने आप को बहुत गौरवान्वित महसूस करता हूँ जब मैडम ने एक दिन मेरी पढ़ाने की कला को बहुत सराहा था वह दिन मेरे शेक्षणिक जीवन का एक बहुत याद गार  दिन हैं मैडम ने मेरे से कहा की "अंकुश तुम एक नेचुरल शिक्षक हो "।  मैंने मैडम से कहा की मैडम मैं आपसे ही सीख कर एक अच्छे इंसान बनने और बनाने की कोशिश कर रहा हूँ ।  अगले पैराग्राफ मैं कुछ बेमिसाल योग्यता आप लोगो से साँझा कर रहा हूँ जो की हम सबको एक अच्छा इंसान बनने मैं मददगार  साबित होंगी 

                                         मैडम हमेशा यह कहा करती थी learn ,earn and return  उनका यह मानना था की एक सुलझा हुआ व्यक्ति वह जो समाज मैं अच्छे काम से अपनी छाप रखता हैं ।  सादगी से भरा जीवन और विनम्र व्यवहार दो ऐसे शब्द हैं जो हमको हमेशा याद रखना और अनुसरण करने की कोशिश निरंतर करना चाहिये । एक समाज मैं विनम्र और हमेशा सीखना की चाह रखने वाले व्यक्ति की बहुत ही आवश्यकता हैं और यही  बातें मैं उनके पुत्र और पुत्री मैं देखता हूँ और उन्ही के प्रयासों से विद्यालंकर आज भी उचाई को  छूने की उड़ान मैं अग्रसर हैं । वह हमेशा कहा करती थी एक संस्थान एक या दो लोगो से जुड़कर नहीं बनता आज एक अच्छा organisation वही हैं जो हर उस व्यक्ति की मेहनत से बनता हैं । वह हर व्यक्ति से इतने स्नेह से बात करती थी की उनसे मिलने के बाद ऐसा  लगता था इस सरलता की आज हमारे  समाज को बहुत आवश्यकता हैं ।आज शारारिक रूप मैं मैडम हमारे बीच मैं नहीं हैं लेकिन उनके विचार,उनके कथन,उनकी  जीवन शैली युगों युगों तक नवयुवको की प्रेरणा का माध्यम रहेगी । आज जब भी मैं उनकी  दूसरी पीड़ी को देखता हूँ तो वह सारे बहुमूल्य गुण मुझे उनमे नजर आते हैं जो आने वाले समय मैं विद्यालंकार को  हमेशा शिक्षा के क्षेत्र मैं गति प्रधान करेंगे । अपने विनम्र स्वाभाव से , अपने अच्छे कर्मो से , अपने प्रसनचित व्यक्तित्व से , कभी हार नहीं मानने वाले गुणो से , हमेशा लोगो के लिए अच्छे विचार रखने वाले के उद्देश्य से आग बढ़ते  रहिये और देखिये की ज़िन्दगी कितनी अर्थ से भरपूर हैं । यही सीख मैडम ने मुझे दी और यह सीख मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आप लोगो को साँझा कर रहा हूँ । मैं एक बार और बार नमन करता हूँ उस व्यक्तिव का जिसने मुझे जीने के मार्ग मैं सच्ची और नितांत ही आवश्यक शिक्षा दी । मैडम आपके विचार इस समाज मैं हमेशा जीवित रहेंगे । 

Thursday, July 7, 2016

 सुल्तान स्पोर्ट्स या सलमान 


                                               यह एक अजब ही इत्तेफ़ाक़ हैं की जैसे ही सलमान की कोई मूवी रिलीज़ होती हैं सब लोग हरकत मैं आ जाते हैं । इस बात का   संदेह नहीं रह गया हैं की स्टारडम की इस दौड़ मैं सलमान ने सारे तथाकथित स्टार्स को बहुत पीछे  छोड़ दिया हैं । यह एक स्टार का एक अद्भुत गुरुत्वाकर्षण हैं की उसकी मौजूदगी ही टिकट खिड़की को हिला कर रख देती हैं । वह खुद कितने भी विवादों मैं गिरे रहे पर उनको शुभचिंतक और उनके फैन को उनसे कुछ फर्क नहीं पड़ता हैं । सलमान सलमान हैं सिर्फ नाम ही काफी हैं ।  मुझे याद हैं की एक जमाना था की जब लोग क्रिकेट  केवल कपिल देव या उसके बाद सचिन के लिए देखते थे । 
कपिल मध्य श्रेणीं मैं बैटिंग करते थे और जब तक कपिल नहीं आते थे लोग टीवी से चिपके बैठे रहते थे या सचिन जो ओपनिंग मैं बैटिंग करा करते थे तो लोग बस उनको देखने को बैठे रहते थे । मुझे याद हैं मेरे इंजीनियरिंग हॉस्टल के दिनों मैं हम लोग मैच कॉमन रूम मैं देखते थे और जैसे ही सचिन आउट हो जाते थे आधे से ज्यादा कॉमन रूम खाली  हो जाता था । यह एक स्टार को चाहने की पराकाष्ठा हैं । ऐसा स्टारडम पाना आपने आप मैं एक मिसाल हैं किसी चमत्कार से काम नहीं हैं । 

                                             कुछ इसी तरह का नजारा आज हर सिनेमा हॉल के बाहर  दिखाई पढ़ रहा हैं । भाई की पिक्चर रिलीज़ हुई जो आपने आप मैं किसी त्यौहार से कम नहीं हैं । हर इंसान किसी ने किसी तरह से भाई के स्टार डॉम की प्रशंसा करे नहीं थक रहा हैं । मैंने आज आपने नजदीक के सिनेमा हाल मैं देखा की हर आदमी इस से अपना व्यवसाहीकरण भी जोड़ रहा हैं । चाहे वह टिकट के रेट हो यहाँ सलमान की पहनी हुई सामग्री हो सभी  अपनी अपनी कोशिश मैं हैं की कुछ इस बिज़नेस का फायदा उन्हें भी हो  जाये । आजकल तो App के द्वारा  टिकट की बुकिंग होती हैं पर स्टारडम का सही नजारा देखना हैं तो टिकट खिड़की पर लम्बी कतारों को देखकर समझ मैं आता की स्टार पावर क्या चीज होती हैं । हर जगह सलमान का नशा छाया हुआ हैं । यह स्टारडम कोई रातो रात मिली सफलता नहीं हैं इस स्टारडम को पाने मैं कड़ी मश्ककत  लगती हैं । लगन ,परिश्रम और निरंतरता ही इसकी सीढ़ियां हैं । यह कहना की अरे सलमान तो बस लुक्स पर यहाँ बॉडी के कारण  चलंता हैं बहुत ही नाइंसाफी  होगी या उस  लगन ,मेहनत और निरंतरता का निरादर होगा ।  यह समझना बहुत जरूरी हैं की हम इन सभी उदहारण  से क्या सीख ले सकते हैं । इसलिए तो शायद इनका बोल गया एक गलत वाक्य बहुत लोगो को आहत   कर देता हैं और हो भी क्यों न जिनको लोग इतना प्यार करते हैं उनके द्वारा अगर कुछ गलत बोल जायेगा तो  लोगो को तकलीफ  होगी ही । इसलिए संयम भी बहुत जरूरी हैं और आजकल के मीडिया प्रधान युग मैं वाणी की संयमता बहुत ही आवश्यक हैं ।  स्पोर्ट्स मैं अनेकानेक उदहारण हैं जहां संयमता नहीं होने के बहुत दुष्परिणाम खेल कूद से जुड़े लोगो ने भुगते हैं । 

                                            लगन , मेहनत ,निरंतरता , संयम ज़िन्दगी के वह चार सूत्र हैं जिनक अनुसरण करके बहुत कुछ पाया जा सकता हैं । सलमान , सचिन , कपिल या कोई भी उपलब्धिपूर्ण इंसान बनना एक महत्वपूर्ण वाकया हैं और हमको इन साख सीखना चाहिए । यह मेरा युवा पीढ़ी से आव्हान हैं की इन चार सूत्रों की अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाये और देखे की आप आपने आप मैं बहुत सकारात्मक बदलाव महसूस कर रहे हैं । पर जाइए अभी तो सलमान का स्टार डम का लुत्फ़ उठाइए और देखिये की एक सुपर स्टार मेगा स्टार कैसे बनता हैं । 

Sunday, July 3, 2016

स्पोर्ट्स आपको संकट के मायने  बताता हैं 

यह बात सही हैं की आजकल के युग मैं संकट का नाम सुनके हर इंसान घबरा जाता  हैं ! इस समय भारत जब वैश्वीकरण के दौर से गुजर कर एक बहुत आशावान देश बन चुका  हैं ! हमेशा कुछ पाने की ज़िद एक आम आदमी की ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी हैं | हम सभी लोग किसी न किसी रेस का हिस्सा बन चुके हैं । पारिवार,पैसा ,समाज मैं इज्जत यह हम सभी को बहुत ही प्रभावित्  करता  हैं । आजकल जहां समय इतने तेज गति से गुजर रहा हैं की हम सब उसकी रफ़्तार को पकड़ने मैं बहुत व्यस्त हैं । इस मैं कुछ बुराई भी नहीं हैं क्योंकि  हमारे सामाजिक ढांचे इसी तरीके से आकार  ले चुके हैं । हम सब को उन्ही सामाजिक ढांचों के अनुरुप अपनी ज़िन्दगी की व्यतीत करना हैं । 

                                                   ऐसे समय मैं किसी भी तरह की असफलता इंसान को बहुत हताश कर देती हैं  आज कल सब सोशल मीडिया के तहत एक दुसरे से जुड़े हुए हैं । सोशल मीडिया मैं इंसान हमेशा अपनी दिखावे  वाली ख़ुशी का व्यक्त करना मैं लगा हैं । नया घर ले लिया तो उसको पोस्ट , नया शहर घुम कर आये तो उसका पोस्ट , कुछ भी इंसान की ज़िन्दगी मैं अच्छा हो रहा हैं तो वह झट से उसको पोस्ट करता हैं । शायद यह दिखावे का ज़माना पहले भी   था बस उसको सोशल मीडिया के स्वररूप मैं एक नया जरिया  मिल गया हैं । कुछ मेरे दोस्तों को तो मैं इतना आदि होते देखा हैं की वह अगर एक मिनट मैं ५-१० बार अपने  पोस्ट पर like नहीं चेक कर लेते हैं तो उनको राहत  ही नहीं मिलती हैं । इसी तरह दूसरा के पोस्ट को देखना भी वह जरूरी समझते हैं । इस समय मैं एक होड़ से चल रही हैं की उसने मेरे फोटो मैं like  किया तो मैं भी उसके पोस्ट  कर्रूँगा नहीं किया तो नहीं कर्रूँगा ।यह सब कुछ बुरा भी नहीं हैं पर  इस सब के कारण हम लोग कभी कभी वास्तविकता से दूर होते जा रहे हैं । आजकल के ज़माने मैं किसी दुसरे के साथ बुरे होते देख इंसान बहुत खुश होता हैं अंदर ही अंदर उसको किसी  इंसान की ज़िन्दगी मैं 
अच्छा समय नहीं चलना का बहुत सुकून होता हैं । भले ही वह चहरे पर हमदर्दी  रखे पर दिल से उसको इतनी हमदर्दी नहीं रहती हैं जो पहले के समय मैं हुआ  करती थी  । यह एक बहुत ही मुश्किल हैं समझ पाना पर यह हकीकत से हम सभी लोग भली भांति परिचित हैं । यह एक बहुत ही कटु सत्य हैं । 

                                                  यह सब  बातें बहुत गम्भीर हो चुकी हैं क्यूंकि इसका असर सीधा लोगो की  की ज़िन्दगी पर पड़ रहा हैं । स्पोर्ट्स ( स्पर्धा ) हमको बहुत कुछ सीखता हैं और समाज की इस विसंगति मैं भी हमको स्पर्धा से सीखना चाहिए । अभी हाल मैं मेस्सी का रिटायरमेंट की खबर देखे या रवि शास्त्री और कुंबले का विवाद यहाँ फिर मोहद शहीद के उपचार के लिए धनराज पिल्लै की प्रधान मंत्री से गुहार । अगर आपको रोजर फेडरर और नडाल के मैच की झलकियां याद होंगी तो आप जरूर इस बाद को याद रखेंगे की भले ही मैदान मैं वह एक दुसरे के प्रतिद्वंदी होंगे पर मैदान के बहार उनको एक दुसरे के लिए बहुत आदर हैं । एक दूसरे के अच्छा समय मैं और एक दुसरे के बुरे समय मैं भी वह एक दुसरे के साथ खड़े हुए हैं । ज़िन्दगी मैं संकट आना भी बहुत जरूरी हैं । संकट के समय आपको बहुत कुछ सीखाता हैं इसलिए शायद किसी भी महान व्यक्ति की आत्म कथा को आप पढेंगे तो आप देखंगे की उनका समय कहीं न कहीं बहुत ही संकट से गुजरा हैं । संकट के समय मैं हम को धैर्य  रखना और आत्मा अवलोकन जरूर करना चाहिए और यह हमे स्पोर्ट्स से अच्छा कोई नहीं सीखा सकता हैं । संकट के समय मैं ही एक अच्छा खिलाडी की परख होती हैं और वह किस तरह से अपने प्रयत्नों से उस समय उभर कर बाहर  आता हैं यहाँ टीम को बाहर निकलता हैं यह एक अविस्मरणीय कला हैं जिसको  सीखना चाहिए । याद करे माइकल फेल्प्स को या युवराज सिंह को तो लगता हैं की ऐसे कितने उदाहरण   हैं जो संकट मोचन बन गए हैं । याद रखे की कोई भी स्पोर्ट मैं अपनी तारीफ खुद ही नहीं करता हैं बल्कि ज़माना उसको तारीफ करता हैं । इस काबिल बने  की लोग बिना आपके like  को देखे बिना आपकोlike करे । संकट के समय धैर्य रखे और हमेशा सयम से संकट का सामना करे नाकि किसी और मैं दोष ढूंढे । संकट के समय दुसरे व्यकित के लिए रियल शुभचिंतक बने नाकि दिखावे के लिए । लोगो की ऐसे समय मैं मदद करें और याद रखें की स्पोर्ट्स मैं जब किसी की injury होती हैं तोह विरोधी खेमा भी हमेशा उसको मदद करता हैं । आशा करते हैं स्पोर्ट्स के इस  पाठ  को हमेशा ध्यान रखंगे औरसंकट मैं अपने आप को और दुसरे के संकट मैं आगे बढ़कर लोगो को मदद करेंगे । 

Thursday, December 10, 2015

Dec 09 2015 : The Times of India (Mumbai)
The relative secret


TEAM BUILDING IS A SCIENCE AND THE REAL MESSAGE LIES IN EINSTEIN'S THEORY OF RELATIVITY
Enough literature is available on team management and most of the literature endorses team management as an art. People have different understanding of a 'team'. For some, a team is as good as the leader, for others, a team means 'Together Everybody Achieves More (TEAM)'. Whatever may be the definition, the success of any effort lies in the success of the unit. The unit makes or breaks an event. Mumbai's success in its current form is a great team story or, for that matter, any successful product launch is a great cohesive effort. The outcome of any task depends on the group and it has happened from Mahabharata days where Pandavas stood together as a unit and delivered as a team. Nowadays, a 100 crore movie club is a unit or team effort.From its inception to promotion, every member plays an important role to help the movie reach to its pinnacle.Team building is more of an art, but a team can also derive great learning from science.Einstein's theory of relativity in an innovative avatar facilitates the learning of team dynamics.Perhaps 'team' is a relative term and it depends on the complete ecosystem to make success look visible. In Einstein's E=MC squared, E stands for Effectiveness and if we put in this equation of relativity, effectiveness or impact is the outcome nowadays for any diligent effort.Effectiveness depends on the product of momentum and square of 2Cs care and capability. To achieve success, momentum is very much required for a team, but if the other half is weak, the final outcome of effectiveness will be a big zero. In the world of VUCA, care and capability are pivotal. For instance, a project can never be effective until and unless care is taken to utilise the true capability of people.There are organisations where the team just vanished because momentum was not multiplied by care and capability. Care for people and to motivate them in public, develop real capability among team members. So next time when you lead a team, remember Einstein's Theory of Relativity in the above context.It will make a big difference.
--The author is COO, Vidyalankar School of Business

Monday, November 14, 2011

Youngistan Hamari Jaan !

Dear Blog Readers,

I had spent last so many year in the field of training and I think I might have interacted with close to 2000 + Brains now and of course at executive people 1000 + as of now . yesterday I had a session with young brigade after completing my session which is more about consumerism in India and metamorphism of young India. I got enthused to come once again on my blog after so many days and write more about youngsters.

I see a trend now a days everyday I read at least one article about India as a young market and Indian as young nation( people refer 60 % of the people below 35 years of age .. I hope different agencies who quote this have verified above fact and have done proper reliability and validity test). Every brand talks about their fitment with young audience . Some brand reshape their target ,some reposition their value statement. I wonder sometime is it a sheep run or well researched run ????? As i starting writing that I spend my days more with youngsters( although I still qualify one among them :-)), i think i have some understanding about them . I always use to say this our youngsters are more straight forward , more honest and more open, But I also say this they are overburden . people are overburdening them with their own vested interest. I feel bad when I see people reiterate that everything is in the hand of youngster's and time has come where youngster's have to change lot of things. Thought like this prompted me to ask are we saying that we have made a enough mess in the last so many years and please come and clean the mess. If we are saying so is it the right signal which we are giving it to them . They look for their role models, they also have their own life to enjoy and cherish. is it not overburdening them will distort lot of cognitive thought process. from Brand to leaders to society to normal person is asking them please deliver or people are asking them now or never .
I always during my session tell students when they make a power point presentation that "power should be there in the point and it should not be just a power point presentation " But youth ( including me ) can ask all the people who have raised expectation from them . Have you given me a typical power point of what went wrong and when it went wrong rather then saying what went right and when it went right .

I urge people to raise expectation but please be rationale in understanding that we can't expect each and everything from them . they also have freedom to live as they want . More important to say they are quite knowledgeable to decide what is right and what is wrong .

"Lets us not overburden them let us empathise and guide them" .....