अभी हाल मैं मैंने कामनाओ का मोक्ष पुस्तक पड़ी जो की रहस्मय कहानी की महारथ रखने वाले रोहित शुक्ला जी ने लिखी हैं | इस फिक्शनल उपन्यास को पड़कर मुझे बहुत ही अच्छी और सुखद अनुभूति हुई |
जिसके कारन मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने पाठको को अवगत करा रहा हूँ | इसकी पृष्टभूमि बहुत ही विचारपूर्ण और आजकल के सम्माज की कहानी का एक चित्रण हैं | बुजर्ग लोगो की ज़िन्दगी के मायनो को यह बहुत ही सजीव तरीके से प्रतिपादित करती है | क्या आज समाज मैं जहा परिवार की बुनियाद और हमारी संस्कृति कही न कहीं आझोल हो रही हैं इसे मैं लेखक एक बुजर्ग क्या चाहता हैं उसका बहुत ही खूबसूरती से वर्णन करते हैं |
बुजर्ग अपनी उम्र बिताने के बाद उस मोड़ पर आकर खड़े हो जाते हैं जहा पर उनको अपनी ज़िन्दगी का अवलोकन करने का मौका मिलता हैं | वृधाश्रम मैं रहने की पीड़ा और वृधा आश्रम को मैनेज करना यह दोनों पहलु बहुत अच्छे से इस कथा मैं उभरकर कर सामने आते हैं | हर इंसान अपनी ज़िन्दगी मैं भाग रहा हैं और इस भाग दौड़ मैं वह ज़िन्दगी के मायने को भूल जाता हैं | वो ज़िन्दगी मैं इस तरह से खो जाता हैं की ज़िन्दगी के मायने ही भूल जाता हैं | पैसे को पाने की चाह और कहीं का कहीं यह महसूस होना की पैसे ही ज़िन्दगी मैं सब कुछ हैं यह विचार से ऊपर इंसान उठ नहीं पाता या उठा ही नहीं हैं | लेकिन जब वह दौलत को हासिल कर लेता हैं तब इंसानियत क्या उसको छूती हैं यहाँ इंसानियत का घोल उसकी ज़िन्दगी का सार बन जाता हैं इसको रहस्मय अंदाज मैं इस कहानी मैं जिक्र किया गया हैं | कहानी के पत्र बहुत ही सजीव और कहानी की पृष्ठभूमि बहुत ही दिलचस्प हैं | कहानी मैं रहस्य बना रहता हैं जिसके कारण से एक बार इसको पढना चालू करते हैं फिर इसको पूरा पड़कर ही मन मानता हैं |
कहानी के बारे मैं ज्यादा जिक्र नहीं करूंगा पर कहानी की सीख के बारे मैं बताना पसंद करूंगा
कुछ सवाल ज़िन्दगी के मायने क्या हैं ? इंसानियत ज्यादा जरूरी हैं की सिर्फ पैसा ? क्या हमारे सामाजिक ढाचे ख़तम हो गए हैं | समाज का बहुत तेज गति से विघटन हो रहा हैं ? रिश्तो की बुनियाद क्या हैं ? मैं बधाई देना चाहता हूँ रोहित जी जिन्होंने यह सभ हमको सोचने को मजबूर किया हैं और आशा करता हूँ की आने वाले समय मैं वह इसी तरह हम सब को अपने हिंदी लेखन से इम्प्रेस करते रहे |
जिसके कारन मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने पाठको को अवगत करा रहा हूँ | इसकी पृष्टभूमि बहुत ही विचारपूर्ण और आजकल के सम्माज की कहानी का एक चित्रण हैं | बुजर्ग लोगो की ज़िन्दगी के मायनो को यह बहुत ही सजीव तरीके से प्रतिपादित करती है | क्या आज समाज मैं जहा परिवार की बुनियाद और हमारी संस्कृति कही न कहीं आझोल हो रही हैं इसे मैं लेखक एक बुजर्ग क्या चाहता हैं उसका बहुत ही खूबसूरती से वर्णन करते हैं |
बुजर्ग अपनी उम्र बिताने के बाद उस मोड़ पर आकर खड़े हो जाते हैं जहा पर उनको अपनी ज़िन्दगी का अवलोकन करने का मौका मिलता हैं | वृधाश्रम मैं रहने की पीड़ा और वृधा आश्रम को मैनेज करना यह दोनों पहलु बहुत अच्छे से इस कथा मैं उभरकर कर सामने आते हैं | हर इंसान अपनी ज़िन्दगी मैं भाग रहा हैं और इस भाग दौड़ मैं वह ज़िन्दगी के मायने को भूल जाता हैं | वो ज़िन्दगी मैं इस तरह से खो जाता हैं की ज़िन्दगी के मायने ही भूल जाता हैं | पैसे को पाने की चाह और कहीं का कहीं यह महसूस होना की पैसे ही ज़िन्दगी मैं सब कुछ हैं यह विचार से ऊपर इंसान उठ नहीं पाता या उठा ही नहीं हैं | लेकिन जब वह दौलत को हासिल कर लेता हैं तब इंसानियत क्या उसको छूती हैं यहाँ इंसानियत का घोल उसकी ज़िन्दगी का सार बन जाता हैं इसको रहस्मय अंदाज मैं इस कहानी मैं जिक्र किया गया हैं | कहानी के पत्र बहुत ही सजीव और कहानी की पृष्ठभूमि बहुत ही दिलचस्प हैं | कहानी मैं रहस्य बना रहता हैं जिसके कारण से एक बार इसको पढना चालू करते हैं फिर इसको पूरा पड़कर ही मन मानता हैं |
कहानी के बारे मैं ज्यादा जिक्र नहीं करूंगा पर कहानी की सीख के बारे मैं बताना पसंद करूंगा
कुछ सवाल ज़िन्दगी के मायने क्या हैं ? इंसानियत ज्यादा जरूरी हैं की सिर्फ पैसा ? क्या हमारे सामाजिक ढाचे ख़तम हो गए हैं | समाज का बहुत तेज गति से विघटन हो रहा हैं ? रिश्तो की बुनियाद क्या हैं ? मैं बधाई देना चाहता हूँ रोहित जी जिन्होंने यह सभ हमको सोचने को मजबूर किया हैं और आशा करता हूँ की आने वाले समय मैं वह इसी तरह हम सब को अपने हिंदी लेखन से इम्प्रेस करते रहे |
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