Saturday, September 17, 2016

"साक्षत्कार हृदयस्पर्शी व्यक्तितव से: स्व संजीवनी देशपांडे मैडम एक संस्मरण"

 "साक्षत्कार हृदयस्पर्शी व्यक्तितव से: स्व  संजीवनी देशपांडे मैडम एक संस्मरण" 



                                                            आज दुनिया जहा कुछ पाने की चाह मैं इतने आगे निकल गयी हैं की इंसान को इंसान  के अलावा सब बातों की फ़िक्र हैं । जीवन की इस आपाधापी मैं इंसान अपने व्यक्तित्व को भूल गया हैं  । कही न कही सहृदय की भावना इस समाज से औझल  हो गयी हैं । आज मनुष्य अपने आप मैं इतना व्यस्त हो गया हैं की वह  दूसरो के भाव को भूल सा गया हैं । एक महत्वकांशी व्यक्ति केवल अपनी महत्वकांशा को पाने के लिए दूसरो लोगो को  एक सीडी के रूप मैं देखता हैं । विडम्बना हैं की समाज आजकल इस तरह की विरोधोभास परिस्थिति  मैं ही जीना सीख गया हैं । इसी परिपेक्ष्य मैं एक ऐसे व्यक्तित्व का जिक्र कर रहा हूँ जिस की खोज आज हमारे समाज को हर तरफ से हैं । 

                                                         मैं अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ की मेरी मुलाकात भी कुछ ऐसे लोगो से हुई जिनसे मैं बहुत कुछ सीखा  और जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित किया । एक ऐसा व्यक्तित्व जिनको मैं इस श्रेणी मैं बहुत ऊपर रखता हूँ वो हैं प्रेरणादायक स्व संजीवनी देशपांडे मैडम | मेरे मन को अत्यन्त्क्त दुःख का प्रतिपादन होता हैं की मैडम का स्वर्गवास ४ सितम्बर २०१६ को हो गया पर उनकी दी गयी सीख केवल मुझे हो नहीं पर वह बहुत सारे  लोग जो विद्यालंकार  से जुड़े हुए हैं उनको हमेशा याद रहेगी । यह संस्मरण हैं एक ऐसे व्यक्ति के लिए  जिन्होंने अपने पूरा जीवन दूसरो का  भविष्य बनाने मैं समर्पित कर दिया । 

                                                     कुछ वर्षो पूर्व जब मैडम से मेरी मुलाकात हुई थी वह दिन आज भी मेरे हृदय मैं चिन्हित हैं एक esa  दिन जिसने मेरे सीखने की एक नयी नींव रख दी । मुझे याद हैं जब मैडम मेरे से मिले तो हमारा बीच मैं इतने सहज भाव से वार्तालाप शुरू हुआ की मुझे लगा ही नहीं यह मेरी उनसे पहली मुलाकात हैं । उस समय हमारी बातें विद्यालंकार की स्थापना और विद्यालंकार के सिद्धांत को लेकर होती थी । जो पाठक मेरे ब्लॉग से वाकिफ हैं उनको मैं यहाँ यह जिक्र करना चाहता हूँ की विद्यालंकार एक शक्षणिक समूह हैं जिसकी बुनियाद देशपांडे मैडम ने अपने पतिदेव के साथ १९६० मैं की थी । देशपांडे सर ने उस समय उच्च श्रेणी की सरकारी नौकरी का परित्याग कर विद्यालंकार की स्थापना की थी । उनका उद्य्श्य हमेशा से छात्र समूह को बेहतर से बेहतर शिक्षा प्रधान करने का था इसलिए विद्यालंकार का नाम भी उसी की चिर तार्थ करता हैं । विद्यालंकार का अभीप्राय हैं विद्या और अलंकार का समागम । विद्या हमारे शरीर का अभिन्न अंग हैं और यही हैं विद्यालंकार का मकसद जो आज ५६ साल बाद भी अटल और अभिन्न हैं । 

                                                एक पत्नी हर हाल मैं अपने पति का साथ निभाती हैं और यह हमको मैडम देशपांडे से बेहतर कौन  समझा  सकता हैं । उनके पति का  ऐसे समय मैं सरकारी नौकरी का त्याग करना जब अमुमन  सभी लोग सरकारी नौकरी को  करना पसंद करते थे और ऐसे समय मैं मैडम देशपांडे का उनका हर मोड़ पर साथ निभाना  एक बहुत ही बड़ी मिसाल हैं । मैडम देशपांडे ने शिक्षक  की नौकरी करी  क्योंकि टीचर बनने को अपने धर्म और करम समझती थी । जब देशपांडे सर विद्यालंकार की स्थापना करना मैं जी तोड़ की मेहनत कर रहे  थे तब मैडम देशपांडे परिवार का पालन पोषण अपनी शिक्षक की भूमिका से अदा कर रही थीँ । उन्होंने मुझे हमेशा यह बात बोली की एक शिक्षक से बड़ा समाज मैं योगदान बहुत काम कर्मो का हैं  । एक अच्छा शिक्षक हमेशा अपने  हृदय मैं  अपने छात्रों को ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण स्थान देता हैं । मैं अपने आप को बहुत गौरवान्वित महसूस करता हूँ जब मैडम ने एक दिन मेरी पढ़ाने की कला को बहुत सराहा था वह दिन मेरे शेक्षणिक जीवन का एक बहुत याद गार  दिन हैं मैडम ने मेरे से कहा की "अंकुश तुम एक नेचुरल शिक्षक हो "।  मैंने मैडम से कहा की मैडम मैं आपसे ही सीख कर एक अच्छे इंसान बनने और बनाने की कोशिश कर रहा हूँ ।  अगले पैराग्राफ मैं कुछ बेमिसाल योग्यता आप लोगो से साँझा कर रहा हूँ जो की हम सबको एक अच्छा इंसान बनने मैं मददगार  साबित होंगी 

                                         मैडम हमेशा यह कहा करती थी learn ,earn and return  उनका यह मानना था की एक सुलझा हुआ व्यक्ति वह जो समाज मैं अच्छे काम से अपनी छाप रखता हैं ।  सादगी से भरा जीवन और विनम्र व्यवहार दो ऐसे शब्द हैं जो हमको हमेशा याद रखना और अनुसरण करने की कोशिश निरंतर करना चाहिये । एक समाज मैं विनम्र और हमेशा सीखना की चाह रखने वाले व्यक्ति की बहुत ही आवश्यकता हैं और यही  बातें मैं उनके पुत्र और पुत्री मैं देखता हूँ और उन्ही के प्रयासों से विद्यालंकर आज भी उचाई को  छूने की उड़ान मैं अग्रसर हैं । वह हमेशा कहा करती थी एक संस्थान एक या दो लोगो से जुड़कर नहीं बनता आज एक अच्छा organisation वही हैं जो हर उस व्यक्ति की मेहनत से बनता हैं । वह हर व्यक्ति से इतने स्नेह से बात करती थी की उनसे मिलने के बाद ऐसा  लगता था इस सरलता की आज हमारे  समाज को बहुत आवश्यकता हैं ।आज शारारिक रूप मैं मैडम हमारे बीच मैं नहीं हैं लेकिन उनके विचार,उनके कथन,उनकी  जीवन शैली युगों युगों तक नवयुवको की प्रेरणा का माध्यम रहेगी । आज जब भी मैं उनकी  दूसरी पीड़ी को देखता हूँ तो वह सारे बहुमूल्य गुण मुझे उनमे नजर आते हैं जो आने वाले समय मैं विद्यालंकार को  हमेशा शिक्षा के क्षेत्र मैं गति प्रधान करेंगे । अपने विनम्र स्वाभाव से , अपने अच्छे कर्मो से , अपने प्रसनचित व्यक्तित्व से , कभी हार नहीं मानने वाले गुणो से , हमेशा लोगो के लिए अच्छे विचार रखने वाले के उद्देश्य से आग बढ़ते  रहिये और देखिये की ज़िन्दगी कितनी अर्थ से भरपूर हैं । यही सीख मैडम ने मुझे दी और यह सीख मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आप लोगो को साँझा कर रहा हूँ । मैं एक बार और बार नमन करता हूँ उस व्यक्तिव का जिसने मुझे जीने के मार्ग मैं सच्ची और नितांत ही आवश्यक शिक्षा दी । मैडम आपके विचार इस समाज मैं हमेशा जीवित रहेंगे । 

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